Abstract
मानवीय सभ्यता, संस्कृति, तहजीब, परंपराओं, मान्यताओं के इतिहास पर नज़र डाले तो नजर आती है जंगलों में भटकते आदिम-मानव की ओर, जिसके पास न शब्द थे न लिपि थी, न भाषा कोई, वह भटक रहा था जंगल-जंगल कभी इस नदी किनारे तो कभी दूर किसी गुफा में, वह खुद को बरसात में भीगते भीगते छिपने के लिए खोज लिया करता था, आहिस्ता, आहिस्ता उसने समूहों में रहना शुरू किया और फिर बसा एक घर एक गाँव- एक ऐसा गाँव जिसे छोड़ कर वह दूर-दराज भोजन तो कभी शिकार की खोज में निकल जाया करता, और लौटकर आता तो वहाँ, न वह उस घर को खोज पाता न गाँव को कभी तूफानी रातें उजाड़ देती तो कभी जंगली खुँखार जानवर रौंध डालते। वह फिर बनाता एक घर और गाँव- यही सिलसिला उसे बसाता उजाड़ता गया किंतु एक ऐसा भी समय आया- जब उसने अपने गाँव को उजड़ने से बचा लिया और फिर आ बसी उसी गाँव उसके घर में उसकी खुशियाँ, उसके डर अब दरकिनार होने लगे वह आदिम प्रवृत्तियों से उभर रहा था और पहचान रहा था, प्रेम को और बोल रहा था, ‘प्यार की भाषा’। जिससे सिमटने लगी उसकी पहचान, उसकी संस्कृति यही उसका समाज था यही उसकी संस्कृति थी, सभ्यता का विकास हो रहा था और साथ ही ग्राम्य संस्कृति का भी। तब जो गाँव बस रहा था। उस गाँव के साथ-साथ पनप रही थी- ग्राम्य संस्कृति जिसमें पनपने लगी- प्रथाएँ, आस्था विश्वास मान्यताएँ, संस्कार जीवन मूल्य, रीति-रिवाज, नैतिकता जो बना रहे थे अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व यही वह गाँव था जिसने बदल दी उस आदि-मानव की सोच और जीवन पद्धतियाँ- सोच ने, समझने, अनुभव करने के तरीकों में आहिस्ता, आहिस्ता परिवर्तन आ गए और बस गई एक पूरी की पूरी ग्राम्य संस्कृति। सिंधु घाटी सभ्यता, हड़प्पा मोहनजोदड़ो, मेसोपोटामिया, मिस्र जैसी प्राचीनतम सभ्यता, संस्कृतियों में नजर आता है एक गाँव- जिन्हें बर्बर, खुंखार जातियों ने उजाड़ दिया, वे उजड़ाते गए और उजड़ते रहे गाँव, किंतु अंत में फिर बस जाता एक गाँव- जो शहरों से अलग बेहद खुबसूरत था, जिसकी अपनी एक भाषा थीं, अपनी मान्यताएं, अपने संस्कार, अपने गीत, पर्व-उत्सव- कला, नृत्य, परंपराएँ और भी बहुत कुछ जो शहरों में नहीं था- जो सुकुन गाँव में था वह शहर की भागती ज़िंदगी में नहीं, शहरों की अपनी-अपनी उलझनें, बेचैनियाँ थी बौखलाहटें थी, तकलीफें थी- पर गाँव में यह सब कही नहीं था वहाँ सिर्फ और सिर्फ सुकुन, प्यार और नजदिकियाँ थी।
IJCRT's Publication Details
Unique Identification Number - IJCRT2207305
Paper ID - 223240
Page Number(s) - c298-c303
Pubished in - Volume 10 | Issue 7 | July 2022
DOI (Digital Object Identifier) -   
Publisher Name - IJCRT | www.ijcrt.org | ISSN : 2320-2882
E-ISSN Number - 2320-2882